भारत के संविधान के संदर्भ में व्यक्तियों के विचार, कथन और आलोचना एवं किस-किस ने क्या-क्या कहा
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- संविधान सभा के सदस्य एम. आर. जयकर ने कहा - "संविधान सभा एक सप्रभु संस्था नहीं है और उसकी शाक्तियाँ मुलभुत सिधान्तो एवं प्रकिया दोनों की दृष्टी से मर्यादित है l"
- एन. जी. आयंगर का कहना था कि - "इस संविधान का स्रोत यह नहीं है कि इसके निर्माता सम्राट की साकार के तीन सदस्य थे, वरन यह है कि उनके प्रस्तावों को जनता ने स्वीकार कर लिया है l"
- प्रो. श्रीनिवास ने कहा - "हमारा संविधान 1935 के भारतीय संविधान अधिनियम के सामान ही न केवल एक संविधान है बल्कि एक विस्तृत कानून संहिता भी है जिसमे देश की साडी वेधानिक और शासन-सम्बन्धी समस्याओं पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया है l"
- डॉ. जेनिग्स ने कहा - "भारत का संविधान लम्बा, विस्तृत और क्लिष्ट है l"
- जेनिग्स का यह कथन कि - "भारतीय संविधान कठोर है, गलत है l"
- डॉ. जेनिग्स ने कहा - "संशोदन की जटिल प्रणाली, संविधान का विस्तार तथा इसकी विशालता इसे अनम्य बना देते है l"
- डॉ. एम.पी. शर्मा ने कहा कि - भारत की जटिल परिस्थितियों तथा भारतीय जनता की राजनितिक अनुभवहीनता को दृष्टि में रखते हुए भारतीय संविधान के निर्माताओं ने यही उचित समझा कि सब बातें स्पष्ट रूप से संविधान में रख दी जाएँ और कोई खतरा न उठाया जाए l"
- डॉ. एम.पी. शर्मा ने कहा है कि - "लचीला संविधान वह है जिसके उपबन्धों को परिस्थिति के अनुसार बिना संशोधन की औपचारिक प्रक्रीया के मोड़ा जा सकता है l"
- न्यायाधीश श्री पी.बी. मुखर्जी ने कहा है कि - "भारतीय संविधान अध्यक्षात्मक शासन-प्रणाली के साथ संसदीय प्रणली का गठबंधन करता है l"
- अलैक्जैन्द्रोबिक्स कहा था कि - "भारतीय संविधान का किसी सीमा तक कठोर होना स्वाभाविक ही था, क्योकि यह संघात्मक संविधान है l फिर भी यह कहना कि भारतीय संविधान इतना है कि उसमें संशोधन करना कठिन होगा अथवा यह कहना कि यह आवश्यक रूप से कठोर नहीं है और उसमें संशोधन करना कठिन होगा और उसमे अवांछित सुधर किये जाते रहेंगे, सही नहीं है l"
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा - "हम चाहते हैं कि हमारा संविधान सदेव के लिए स्थायी रहे, किन्तु संविधान का स्थायित्व वांछनीय नहीं है l संविधान में लचीलापन होना चाहिए l यदि संविधान में सभी कुछ स्थाई और कठोर बना दिया जाय तो राष्ट्र का विकास रुक जायेगा क्योंकि राष्ट्र जीवित प्राणियों का समूह है l किसी भी स्थति में हम अपने संविधान को इतना कठोर नहीं बनाना चाहते जो इन बदलती हुई स्थितियों के अनुरूप बदल न सके l"
- दुर्गादास बासु ने कहा - "भारतीय संविधान ने अदभुत ढंग से अमरीकी न्यायालय की सर्वोच्चता के सिच्दंत एवं इंग्लैंड की संसदीय पसप्रभुता के सिधान्त के बीच का मार्ग अपनाया है l"
- अशोक चंदा ने कहा - "भारतीय संविधान संसदीय एवं न्यायपालिका की सर्वोच्चता के बीच से गुजरता है l"
- जी. आस्टिन ने कहा है कि - "संविधान साथ सरे भारत की एक लघु झांकी प्रस्तुत करती थी l"
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